भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी में 9 सितम्बर, 1850 को हुआ था। इनके पिता श्री गोपालचन्द्र अग्रवाल ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे और‘गिरिधर दास’ उपनाम से भक्ति रचनाएँ लिखते थे। घर के काव्यमय वातावरण का प्रभाव भारतेन्दु जी पर पड़ा और पाँच वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपना पहला दोहा लिखा। उनको काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया- लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुद्ध सुजान। बाणासुर की सेन को हनन लगे भगवान॥ उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने १८८० में उन्हें 'भारतेंदु'(भारत का चंद्रमा) की उपाधि प्रदान की। धन के अत्यधिक व्यय से भारतेंदु जी ॠणी बन गए और दुश्चिंताओं क
हिन्दी की प्रसिद्ध रचनाओं का सन्कलन Famous compositions from Hindi Literature