जित देखो उत रामहिँ रामा: एक आध्यात्मिक विश्वदर्शन

मार्च 03, 2025 ・0 comments

 जित देखो उत रामहिँ रामा

जित देखो उत पूरण कामा


तृण तरुवर साते सागर

जिते देखो उत मोहन नागर


जल थल काष्ठ पषाण अकाशा

चंद्र सुरज नच तेज प्रकाशा


मोरे मन मानस राम भजो रे

'रामदास' प्रभु ऐसा करो रे


"जित देखो उत रामहिँ रामा": एक आध्यात्मिक विश्वदर्शन

रामदास जी द्वारा रचित इस भजन "जित देखो उत रामहिँ रामा" में एक गहन आध्यात्मिक दर्शन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें वे सभी प्राणियों और पदार्थों में राम के दिव्य अस्तित्व को देखने की बात करते हैं। यह कविता सर्वव्यापी ब्रह्म के सिद्धांत का सुंदर चित्रण है। आइए इस भजन का विश्लेषण करें।

भजन का अर्थ और व्याख्या

"जित देखो उत रामहिँ रामा, जित देखो उत पूरण कामा"

पहली पंक्ति में कवि कहते हैं कि जहां भी मैं देखता हूं, वहां मुझे राम ही राम दिखाई देते हैं। दूसरी पंक्ति में वे कहते हैं कि जहां भी मैं देखता हूं, वहां पूर्ण आनंद और संतुष्टि है। यह पंक्तियां अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को दर्शाती हैं, जहां परमात्मा सब जगह विद्यमान है और परिपूर्णता का स्रोत है।

"तृण तरुवर साते सागर, जिते देखो उत मोहन नागर"

कवि बताते हैं कि तिनके से लेकर विशाल वृक्षों तक और सप्त सागरों में, जहां भी मैं देखता हूं, वहां मुझे मोहन नागर (सुंदर राम) दिखाई देते हैं। यहां "मोहन नागर" राम के सौंदर्य और आकर्षण को दर्शाता है, जो प्रकृति के हर कण में मौजूद है।

"जल थल काष्ठ पषाण अकाशा, चंद्र सुरज नच तेज प्रकाशा"

इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जल, थल, लकड़ी, पत्थर और आकाश में, चंद्रमा, सूर्य और उनके तेज प्रकाश में भी मुझे राम दिखाई देते हैं। यह पंक्तियां दर्शाती हैं कि परमात्मा प्रकृति के हर तत्व में व्याप्त है - चाहे वह जड़ हो या चेतन, प्रकाशमान हो या अप्रकाशित।

"मोरे मन मानस राम भजो रे, 'रामदास' प्रभु ऐसा करो रे"

अंतिम पंक्तियों में कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहते हैं, "हे मेरे मन, राम का भजन करो।" और फिर स्वयं को 'रामदास' (राम के सेवक) के रूप में पहचानते हुए प्रार्थना करते हैं, "हे प्रभु, ऐसा करो।" यहां कवि अपने मन से राम में लीन होने का आग्रह करते हैं और परमात्मा से ऐसी कृपा की याचना करते हैं।

आध्यात्मिक संदेश और महत्व

इस भजन का मुख्य संदेश है परमात्मा की सर्वव्यापकता और एकता का अनुभव। यह भजन हमें सिखाता है कि:

  1. सर्वव्यापी ब्रह्म: परमात्मा हर जगह विद्यमान है - प्रकृति, प्राणियों, जड़ पदार्थों में और यहां तक कि आकाश में भी।
  2. अद्वैत दर्शन: यह भजन अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को प्रतिबिंबित करता है, जहां परमात्मा और सृष्टि के बीच कोई भेद नहीं है।
  3. भक्ति मार्ग: कवि राम भजन का महत्व बताते हैं, जो भक्ति मार्ग के अनुसार मोक्ष प्राप्ति का साधन है।
  4. आंतरिक दृष्टि: भजन हमें अपनी आंतरिक दृष्टि विकसित करने के लिए प्रेरित करता है, ताकि हम हर चीज में ईश्वर को देख सकें।

संत रामदास का परिचय

यह भजन संत रामदास द्वारा रचित है, जो 17वीं शताब्दी के प्रसिद्ध संत, कवि और समाज सुधारक थे। रामदास जी राम भक्ति की 'दासत्व' (सेवक) परंपरा के प्रमुख संतों में से एक थे। उनका मूल नाम नारायण था, और वे महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक गुरु भी थे।

रामदास जी ने अपने जीवन में कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें 'दासबोध' विशेष रूप से प्रसिद्ध है। उनकी शिक्षाएं भक्ति, ज्ञान और कर्म के समन्वय पर आधारित थीं। उन्होंने राम के प्रति समर्पण के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया और समाज में धार्मिक जागृति का प्रसार किया।

समकालीन प्रासंगिकता

यह भजन आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि रचना के समय था। आधुनिक जीवन की भागदौड़ और भौतिकवादी दृष्टिकोण में, यह भजन हमें याद दिलाता है कि:

  1. एकता का दर्शन: जब हम प्रत्येक वस्तु और प्राणी में परमात्मा को देखना सीखते हैं, तो हमारे हृदय में प्रेम और करुणा का भाव जागता है।
  2. आंतरिक शांति: सभी में परमात्मा के दर्शन से आंतरिक शांति और संतुष्टि मिलती है।
  3. पर्यावरण संरक्षण: जब हम प्रकृति को ईश्वर का रूप मानते हैं, तो उसके संरक्षण का महत्व स्वतः समझ में आता है।
  4. मानवीय एकता: इस दृष्टिकोण से, सभी मनुष्य परमात्मा के अंश हैं, जिससे मानवीय एकता की भावना पुष्ट होती है।

निष्कर्ष

"जित देखो उत रामहिँ रामा" एक सरल लेकिन गहन आध्यात्मिक संदेश देने वाला भजन है। यह हमें सिखाता है कि परमात्मा की सर्वव्यापकता को पहचानना ही सच्ची आध्यात्मिकता है। जब हम हर कण में ईश्वर के दर्शन करते हैं, तो जीवन एक आनंदमय यात्रा बन जाता है।

यह भजन हमें एक ऐसी जीवन दृष्टि अपनाने के लिए प्रेरित करता है, जहां हम सभी प्राणियों और पदार्थों में दिव्यता का अनुभव करें, जिससे हमारे हृदय में प्रेम, शांति और एकता का भाव जागृत हो।


इस तरह, रामदास जी का यह भजन न केवल एक धार्मिक रचना है, बल्कि एक गहन दार्शनिक विचार और जीवन जीने का एक तरीका भी प्रस्तुत करता है, जो सर्वव्यापी दिव्यता के अनुभव पर आधारित है।

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Published on http://rachana.pundir.in

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