हरिवंशराय बच्चन - है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है

हरिवंशराय बच्चन - है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है

 

ये कविताएँ बहुत सुंदर हैं। काफी समझदार और भावपूर्ण हैं। कवि ने अपने शब्दों के जादू से अच्छी तरह से एक संदेश दिया है कि हमें अपने सपनों और भावनाओं को सम्मान देना चाहिए। हमें चाहिए कि हम अपने सपनों को सच करने के लिए कठिनाइयों का सामना करें और अपनी उम्मीदों को कभी नहीं छोड़ें। इसी तरह, हमें अपनी भावनाओं को जीवंत रखने के लिए कुछ न कुछ करना चाहिए और उन्हें उभारने के लिए उनके आभासों को संजोए रखना चाहिए। इसके अलावा, हमें अपने जीवन में सुख और दुख दोनों को स्वीकार करना चाहिए, और समस्याओं का सामना करना चाहिए और उन्हें हल करने का प्रयास करना चाहिए।


कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था

भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था।


स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा

स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था

ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को

एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है

है अँधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है।


बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम

का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम

प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा

थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम

वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली

एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है

है अँधेरी रात पर दीया जलाना कब मना है।


-हरिवंशराय बच्चन

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