जीवन होता है साँसों की समाधि
जीcवन होता है साँसों की समाधि, मंदिर का दीप उसकी ज्योति से जगमगाने दो।
रजत शंख, घड़ियाल, स्वर्ण वंशी, वीणा, आरती वेला के लय से भरे जाओ सब मनोरंजन का मीना।
कल के दिनों में कंठों का था मेला, उपलों पर तिमिर का हुआ था खेला, अब इष्ट को सबसे हो जाने दो अकेला,
इस शून्यता को भी उसके अजिर से भरने दो।
चरणों से चिह्नित है अलिंद की भूमि, शिरों पर हैं प्रणति के अंक, चंदन की दहली है यहाँ की धूम।
सुमन झरते हैं, अक्षत सितल होते हैं, धूप-अर्घ्य-नैवेद्य सब बहुत अपरिमित होते हैं, अब तो सबका अंत होना है, तम तक पहुंचना है,
सबकी अर्चना इस लौ में भी पल जाने दो।
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