आओ रे सलोना मारा मीठडा मोहन
नवंबर 15, 2024 ・0 comments ・Topic: आओ रे सलोना मारा मीठडा मोहन meera
आओ रे सलोना मारा मीठडा मोहन आंखडली मां तमने राखूँ रे हरि जे रे जोइये ते तमने आनी आनी आपुं मीठाइ मेव: तमने खावा रे ऊँची ऊँची मेडी साहेबा अजब झरूखा झरूखे चढी चढी झांखुं रे चुन चुन कलियाँ वाली सेज बीछावुं भमर पलंग पर सुखवारी नांखुं रे 'मीराँ बाई के प्रभू गिरिधर निर्गुन तारा चरण कमल पें मन राखूँ रे |
आओ रे सलोना मारा मीठडा मोहन – मीरां बाई के भक्ति गीत की अद्भुत गूंज
मीरां बाई, भक्ति के अमूल्य रत्नों में से एक, जिन्हें भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा और प्रेम के लिए जाना जाता है, उनका यह भक्ति गीत – "आओ रे सलोना मारा मीठडा मोहन" – एक गहरी भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इस गीत में मीरां बाई ने अपने मन की गहरी भावनाओं और भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी दीवानगी को व्यक्त किया है। आइए, इस गीत के माध्यम से हम मीरां बाई के अद्वितीय भक्ति भाव की यात्रा पर चलें।
गीत की पंक्तियाँ और उनका अर्थ:
1. आओ रे सलोना मारा मीठडा मोहन
मीरां बाई श्री कृष्ण को अपने मीठे मोहन (कृष्ण) के रूप में पुकारती हैं। "सलोना" शब्द का अर्थ है सुंदर और आकर्षक। मीरां के मन में भगवान की छवि इतनी प्रिय और आकर्षक है कि वह उन्हें अपने जीवन के सबसे प्यारे और सुंदर स्वरूप के रूप में देखती हैं। इस पंक्ति में वे कृष्ण से अपने पास आने का आग्रह कर रही हैं।
2. आंखडली मां तमने राखूँ रे
यह पंक्ति भावनाओं की गहराई को व्यक्त करती है। "आंखडली" का अर्थ है आंखों में बसा लेना, अर्थात् मीरां बाई भगवान श्री कृष्ण को अपने दिल और आंखों में बसाए हुए हैं। उनके लिए कृष्ण का ध्यान और भक्ति ही जीवन का उद्देश्य बन चुका है।
3. हरि जे रे जोइये ते तमने आनी आनी आपुं
यह पंक्ति मीरां बाई के आत्मसमर्पण और आस्था को दर्शाती है। वह भगवान श्री कृष्ण को हर स्थान और हर रूप में देखती हैं। "जोइये ते तमने" का अर्थ है जहां भी भगवान को देखा, वहीं उन्हें अपना पाया। मीरां बाई का यह अनुभव उन सभी भक्तों के लिए प्रेरणादायक है जो ईश्वर के हर रूप में उसकी उपस्थिति महसूस करते हैं।
4. मीठाइ मेव: तमने खावा रे
मीरां बाई अपने भगवान को उन मीठे स्वादों के रूप में महसूस करती हैं, जैसे कि मिठाइयाँ और मेवे। उनका प्रेम इतना गहरा है कि वह हर स्वाद और हर अनुभव में भगवान की उपस्थिति महसूस करती हैं। इस पंक्ति में भक्ति की मिठास और आनंद का दर्शन होता है।
5. ऊँची ऊँची मेड़ी साहेबा अजब झरूखा
"मेड़ी साहेबा" का अर्थ है उनका भगवान, जो सर्वोच्च और सर्वोत्तम है। मीरां बाई कह रही हैं कि उनके प्रभु श्री कृष्ण के लिए आकाश से ऊँची मेड़ी और अजीब झरूखा बनाना कोई बड़ी बात नहीं है। यह पंक्ति भक्ति के उस उत्तम स्तर को दर्शाती है, जहां भक्त अपने प्रभु को सर्वोच्च मानता है और उनका हर रूप आदर और प्रेम से भरा होता है।
6. झरूखे चढ़ी चढ़ी झांखुं रे
यह पंक्ति मीरां बाई के प्रेम में अभिव्यक्त होने वाली एक सजीव छवि को प्रस्तुत करती है। वह झरूखे (झरोखा) पर चढ़कर भगवान की झलक पाने की इच्छा रखती हैं। उनका हर कदम प्रभु के दर्शन की ओर बढ़ता है, और उनका प्रेम हर क्षण और हर कदम में प्रकट होता है।
7. चुन चुन कलियाँ वाली सेज बीछावुं
यह पंक्ति उस भक्ति को दर्शाती है जहां मीरां बाई अपने प्रभु के लिए सब कुछ समर्पित करती हैं। वह चुनी हुई कलियों से बिस्तर सजाती हैं, अर्थात् भगवान के लिए दुनिया की सबसे सुंदर और प्यारी चीज़ों को प्रस्तुत करती हैं। यह समर्पण और प्रेम का अद्वितीय उदाहरण है।
8. भमर पलंग पर सुखवारी नांखुं रे
यह पंक्ति भी मीरां के कृष्ण के प्रति असीम प्रेम को दर्शाती है। वह चाहती हैं कि भगवान श्री कृष्ण उनके पलंग पर बैठें और वह अपने प्रेम में पूर्ण रूप से समाहित हो जाएं। "भमर" का अर्थ है मधुमक्खी, और यहां मीरां बाई ने इसे इस रूप में लिया है कि जैसे मधुमक्खी फूलों में सुख पाती है, वैसे ही वह अपने प्रभु के साथ सुखी रहना चाहती हैं।
9. 'मीराँ बाई के प्रभू गिरिधर निर्गुन
अंतिम पंक्ति में मीरां बाई अपने प्रभु श्री कृष्ण को 'गिरिधर' (गिरिराज, गोवर्धन) के रूप में सम्बोधित करती हैं, जो निर्गुण (निर्दोष और निराकार) होते हुए भी पूरी दुनिया में उनके लिए साकार हैं। मीरां बाई का यह गीत भगवान के प्रति उनका पूर्ण समर्पण और उनके दिव्य रूप का स्पष्ट चित्रण है।
मीरां बाई का यह भक्ति गीत "आओ रे सलोना मारा मीठडा मोहन" न केवल भगवान श्री कृष्ण के प्रति उनका अद्वितीय प्रेम दर्शाता है, बल्कि यह भक्ति की उस गहरी यात्रा को भी उजागर करता है, जहां भक्त अपने प्रभु से पूर्ण रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता है। मीरां बाई का जीवन और उनके गीत आज भी हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति आत्मसमर्पण, प्रेम और भगवान के प्रति अडिग विश्वास की अवस्था होती है।
हर भक्त के दिल में मीरां बाई का गीत गूंजता है, और उनकी भक्ति का संदेश आज भी हमें प्रेरित करता है। "आओ रे सलोना" के साथ मीरां बाई हमें यह बताती हैं कि जब भक्त का दिल प्रेम से भर जाता है, तो भगवान स्वयं उसे अपनी उपस्थिति से आशीर्वादित करते हैं।
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