हनुमान चालीसा: एक अद्भुत स्तुति
नवंबर 15, 2024 ・0 comments
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हनुमान चालीसा: एक अद्भुत स्तुति
हनुमान चालीसा, जिसे 16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया था, एक काव्यात्मक रचना है जो भगवान राम के परम भक्त हनुमान जी के अद्वितीय गुणों, शक्ति और दिव्य चरित्र का वर्णन करती है। यह पवित्र ग्रंथ हनुमान जी की स्तुति के रूप में समर्पित है और उनके संजीवनी, वीरता और समर्पण को श्रद्धापूर्वक समर्पित किया गया है।
हनुमान चालीसा में कुल 40 चौपाइयां हैं (दो परिचयात्मक दोहों को छोड़कर), जो बजरंगबली की महिमा का बखान करती हैं। यह लघु रचना, हनुमान जी की भक्ति और उनके अद्वितीय व्यक्तित्व का सरल और प्रभावी ढंग से चित्रण करती है। यहाँ तक कि प्रभु श्रीराम का रूप और व्यक्तित्व भी बड़े सहज शब्दों में व्यक्त किया गया है, जो भक्तों के हृदय को छू जाता है।
यह काव्य रचना सिर्फ एक स्तुति नहीं, बल्कि हनुमान जी के प्रति श्रद्धा और विश्वास को प्रकट करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
श्रीहनुमान चालीसा
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि ।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
धर्म अर्थ काम मोक्ष श्रीगुरु के चरणकमलों की धूलि से मन दर्पण को पवित्र कर मैं धर्म अर्थादि फलों को देने वाले श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥
हे पवनपुत्र ! मैं बुद्धिहीन आपका स्मरण करता हूं। मुझे आप बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए तथा मेरे दुःखों व दोषों का नाश कीजिए ।
धर्म अर्थ काम मोक्ष श्रीगुरु के चरणकमलों की धूलि से मन दर्पण को पवित्र कर मैं धर्म अर्थादि फलों को देने वाले श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥
हे पवनपुत्र ! मैं बुद्धिहीन आपका स्मरण करता हूं। मुझे आप बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए तथा मेरे दुःखों व दोषों का नाश कीजिए ।
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुंलोक उजागर ॥
हे हनुमान! आपकी जय हो। आप ज्ञान गुण सागर हैं। हे कपीश्वर! तीनों लोकों मैं आपकी कीर्ति प्रकट है।
रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवनसुत नामा ॥
हे पवनसुत, अंजनीनन्दन ! श्रीराम के दूत ! इस संसार में आपके समान कोई दूसरा बलवान नहीं है।
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी ॥
हे बजरंगी ! आप महावीर और पराक्रमी हैं। आप दुर्बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छी बुद्धि वालों के सहायक हैं।
कंचन बरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥
आपका कंचन जैसा रंग है। आप सुन्दर वस्त्रों से तथा कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ॥
आपके हाथों में बज्र और ध्वजा है तथा आपके कन्धे पर मूंज का जनेऊ आपकी शोभा को बढ़ा रहा है।
शंकर सुवन केसरी नन्दन । तेज प्रताप महा जगबन्दन ॥
हे शंकर के अवतार! हे केसरीनन्दन! आपके पराक्रम और महान यश की सारे संसार में वन्दना होती है ।
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ आप अत्यन्त चतुर, विद्यावान और गुणवान हैं। भगवान श्रीराम के कार्य करने को आप सदा आतुर रहते हैं। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥
आप श्रीराम की महिमा सुनने में आनन्द रस लेते हैं। प्रभु राम, सीता व लक्ष्मण सहित आपके हृदय में बसते हैं ।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
आपने अति छोटा रूप धारण कर माता सीता को दिखाया तथा भयंकर रूप धारण कर रावण की लंका जलाई ।
भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचन्द्र जी के काज संवारे ॥
आपने भयंकर रूप धारण कर राक्षसों को मारा और भगवान श्रीराम के उद्देश्य को सफल बनाने में सहयोग दिया।
लाय संजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥
आपने संजीवनी लाकर लक्ष्मणजी को जीवनदान दिया, अतः श्रीराम ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया ।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥
हे अंजनीनन्दन ! भगवान श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मुझे भरत जैसे प्यारे हो ।
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
'हजारों मुख तुम्हारा यश गाएं' यह कहकर श्रीरामचन्द्रजी ने आपको अपने हृदय से लगा लिया ।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
सनत्, सनातन, सनक, सनन्दन आदि मुनि, ब्रह्मा आदि देवता एवं शेषनागजी सभी आपका गुणगान करते हैं ।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥
आपने सुग्रीव का श्रीरामचन्द्रजी से मेल कराकर उन पर उपकार किया । उन्हें राजा बनवा दिया।
जम कुबेर दिक्पाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहां ते ॥
यम, कुबेर, दिक्पाल, कवि और विद्वान - कोई भी आपके यश का पूरी तरह वर्णन नहीं कर सकते।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना । लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
आपके परामर्श को विभीषण ने माना, जिसके फलस्वरूप वे लंका के राजा बने, इसको सारा संसार जानता है।
जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
हजारों योजन दूर, जहां पहुंचने में हजारों युग लगें, उस सूर्य को आपने मीठा फल समझकर निगल लिया ।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ॥
भगवान राम द्वारा दी गई अंगूठी मुंह में रखकर आपने समुद्र को लांघा । पर यह आपके लिए कोई आश्चर्य नहीं ।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
संसार के जितने भी कठिन से कठिन काम हैं वे सब आपकी कृपा से सहज और सुलभ हो जाते हैं ।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
आप श्रीरामचन्द्रजी के महल के द्वार के रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना वहां कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपकी शरण में आने वाले व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं और उन्हें किसी प्रकार का डर नहीं रहता ।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक ते कांपै ॥
अपने वेग को केवल आप ही सह सकते हैं। आपकी सिंह-गर्जना से तीनों लोकों के प्राणी कांप जाते हैं।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ॥
जो आपके 'महावीर' नाम का जप करता है, भूत-पिशाच जैसी दुष्ट आत्माएं उसके पास नहीं आ सकतीं।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
हे वीर हनुमानजी! आपके नाम का निरन्तर जप करने से समस्त रोग और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
संकट ते हनुमान छुड़ावै । मन-क्रम-वचन ध्यान जो लावै ॥
जो मन क्रम-वचन से आपका ध्यान करता है, हे हनुमान आप उनको दुःखों-संकटों से छुड़ा लेते हैं ।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ॥
राजा श्रीरामचन्द्रजी विश्व में सर्वश्रेष्ठ और तपस्वी राजा हैं, उनके सभी कार्यों को आपने पूर्ण कर दिया।
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥
जो कोई भी भक्त आपका सुमिरन करता है उसके सभी मनोरथ आपकी कृपा से तुरंत पूर्ण होते हैं।
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
हे राम भक्त! आपका यश चारों युगों में विद्यमान है । सम्पूर्ण संसार में आपकी कीर्ति प्रकाशमान है ।
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
हे श्रीराम के दुलारे हनुमानजी! आप साधु-सन्त, सज्जन और धर्म की रक्षा करते हैं, असुरों का सर्वनाश करते हैं।
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता ॥
माता श्रीजानकीजी के वर स्वरूप आप किसी भी भक्त को 'आठों सिद्धियां' और 'नौ निधियां' दे सकते हैं।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥
आप सदैव श्रीरघुनाथजी की शरण में रहते हैं, इसलिए आपके पास असाध्य रोगों की औषधि राम-नाम है।
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम-जनम के दुख बिसरावै ॥
आपका भजन करने वाले को श्रीराम के दर्शन होते हैं और उनके जन्म- जन्मांतर के दुःख दूर हो जाते हैं।
अन्तकाल रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ॥
आपको भजने वाले प्राणी अन्त में श्रीराम के धाम जाते हैं। और मृत्युलोक में जन्म लेकर हरिभक्त कहलाते हैं।
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
जो सच्चे मन से आपकी सेवा करता है, उसे सभी सुख प्राप्त होते हैं, वह किसी और देवता को फिर क्यों पूजे ?
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥
हे बलवीर हनुमानजी! जो मात्र आपका स्मरण करता है, उसके सब संकट और पीड़ाएं मिट जाती हैं।
जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
हे वीर हनुमानजी! आपकी सदा जय हो, जय हो, जय हो । आप मुझ पर श्रीगुरुजी के समान कृपा कीजिए ।
जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महासुख होई ॥
जो प्रतिदिन इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा, वह समस्त बन्धनों से छूट कर परमसुखी हो जाएगा।
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
गौरीपति भगवान शिव साक्षी हैं कि जो इस हनुमान चालीसा को पढ़ेगा, उसे अवश्य सिद्धि प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा ॥
हे मेरे नाथ हनुमानजी! 'तुलसीदास' सदा ही 'श्रीराम' का दास है, अतः आप उसके हृदय में सदा निवास कीजिए ।
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप । रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
हे पवनपुत्र ! आप संकट हरण और मंगल रूप हैं । आप श्रीराम, जानकी एवं लक्ष्मण सहित सदा मेरे हृदय में निवास करें।
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