टकरायेगा नहीं आज उद्धत लहरों से, कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचायेगा ? अब तक धरती अचल रही पैरों के नीचे, फूलों की दे ओट सुरभि के घेरे खींचे, पर पहुँचेगा पथी दूसरे तट पर उस दिन जब चरणों के नीचे सागर लहरायेगा ! कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचायेगा ? गर्त शिखर वन, उठे लिए भंवरों का मेला, हुए पिघल ज्योतिष्क तिमिर की निश्चल वेला, तू मोती के द्वीप स्वप्न में रहा खोजता, तब तो बहता समय शिला सा जम जायेगा । कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचायेगा ? तेरी लौ से दीप्त देव-प्रतिमा की आँखें, किरणें बनी पुजारी के हित वर की पांखें, वज्र-शिला पर गढ़ी ध्वंस की रेखायें क्या यह अंगारक हास नहीं पिघला पायेगा ? कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचायेगा ? धूल पोंछ कांटे मत गिन छाले मत सहला, मत ठण्डे संकल्प आँसुयों से तू नहला, तुझसे हो यदि अग्नि-स्नात यह प्रलय महोत्सव तभी मरण का स्वस्ति-गान जीवन गायेगा । कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचायेगा ? टकरायेगा नहीं आज उद्धत लहरों से कौन ज्वार फिर तुझे दिवस तक पहुँचायेगा ? ------------- अग्निरेखा महादेवी वर्मा
हिन्दी की प्रसिद्ध रचनाओं का सन्कलन Famous compositions from Hindi Literature