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हिन्दी साहित्य का इतिहास - 02

हिन्दी साहित्य का इतिहास

७५० ईसा पूर्व - संस्कृत का वैदिक संस्कृत के बाद का क्रमबद्ध विकास।
५०० ईसा पूर्व - बौद्ध तथा जैन की भाषा प्राकृत का विकास (पूर्वी भारत)।
४०० ईसा पूर्व - पाणिनि ने संस्कृत व्याकरण लिखा (पश्चिमी भारत)। वैदिक संस्कृत से पाणिनि की काव्य संस्कृत का मानकीकरण।
संस्कृत का उद्गम

३२२ ईसा पूर्व - मौर्यों द्वारा ब्राह्मी लिपि का विकास।
२५० ईसा पूर्व - आदि संस्कृत का विकास। (आदि संस्कृत ने धीरे धीरे १०० ईसा पूर्व तक प्राकति का स्थान लिया।)
३२० ए. डी. (ईसवी)- गुप्त या सिद्ध मात्रिका लिपि का विकास।
अपभ्रंश तथा आदि-हिन्दी का विकास

४०० - कालीदास ने "विक्रमोर्वशीयम्" अपभ्रंश में लिखी।
५५० - वल्लभी के दर्शन में अपभ्रंश का प्रयोग।
७६९ - सिद्ध सरहपद (जिन्हें हिन्दी का पहला कवि मानते हैं) ने "दोहाकोश" लिखी।
७७९ - उदयोतन सुरी कि "कुवलयमल" में अपभ्रंश का प्रयोग।
८०० - संस्कृत में बहुत सी रचनायें लिखी गईं।
९९३ - देवसेन की "शवकचर" (शायद हिन्दी की पहली पुस्तक)।
११०० - आधुनिक देवनागरी लिपि का प्रथम स्वरूप।
११४५-१२२९ - हेमचंद्राचार्य ने अपभ्रंश-व्याकरण की रचना की।
अपभ्रंश का अस्त तथा आधुनिक हिन्दी का विकास

१२८३ - अमीर ख़ुसरो की पहेली तथा मुकरियाँ में "हिन्दवी" शव्द का सर्वप्रथम उपयोग।
१३७० - "हंसवाली" की आसहात ने प्रेम कथाओं की शुरुआत की।
१३९८-१५१८ - कबीर की रचनाओं ने निर्गुण भक्ति की नींव रखी।
१४००-१४७९ - अपभ्रंश के आखरी महान कवि रघु।
१४५० - रामानन्द के साथ "सगुण भक्ति" की शुरुआत।
१५८० - शुरुआती दक्खिनी का कार्य "कालमितुल हकायत्" -- बुर्हनुद्दिन जनम द्वारा।
१५८५ - नवलदास ने "भक्तमाल" लिखी।
१६०१ - बनारसीदास ने हिन्दी की पहली आत्मकथा "अर्ध कथानक" लिखी।
१६०४ - गुरु अर्जुन देव ने कई कवियों की रचनाओं का संकलन "आदि ग्रन्थ" निकाला।
१५३२-१६२३ - गोस्वामी तुलसीदास ने "रामचरित मानस" की रचना की।
१६२३ - जाटमल ने "गोरा बादल की कथा" (खडी बोली की पहली रचना) लिखी।
१६४३ - आचार्य केशव दास ने "रीति" के द्वारा काव्य की शुरुआत की।
१६४५ - उर्दू का आरंभ
आधुनिक हिन्दी

१७९६ - देवनागरी रचनाओं की शुरुआती छ्पाई।
१८२६ - "उदन्त मार्तण्ड" हिन्दी का पहला साप्ताहिक।
१८३७ - ओम् जय जगदीश के रचयिता श्रद्धाराम फुल्लौरी का जन्म।
१८७७ - अयोध्या प्रसाद खत्री का हिन्दी व्याकरण, (बिहार बन्धु प्रेस)
१८९३ - काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना
१ मई १९१० - नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई।
१९५० - हिन्दी भारत की राजभाषा के रुप में स्थापित।
१०-१४ जनवरी १९७५ - नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित
दिसम्बर, १९९३ - मॉरीशस में चतुर्थ विश्व हिन्दी सम्मेलन तथा उसके बाद विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना
१९९७ - वर्धा में महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना का अधिनियम संसद द्वारा पारित
२००० - आधुनिक हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास
सन्दर्भ

हिन्दी - उद्भव, विकास और स्वरूप; अष्टम संस्करण, १९८४, पृष्त १५

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स्व. पंडित प्रताप नारायण मिश्र

स्व. पंडित प्रताप नारायण मिश्र प्रतापनारायण मिश्र (सितंबर, 1856 - जुलाई, 1894) भारतेंन्दु मंडल के प्रमुख लेखक, कवि और पत्रकार थे। पंडित जी का जन्म उन्नाव जिले के अंतर्गत बैजे गाँव निवासी, कात्यायन गोत्रीय, कान्यकुब्ज ब्राहृमण पं. संकटादीन के घर आश्विनी कृष्ण नौमी को संवत 1913 वि. में हुआ था।वह भारतेंदु निर्मित एवं प्रेरित हिंदी लेखकों की सेना के महारथी, उनके आदर्शो के अनुगामी और आधुनिक हिंदी भाषा तथा साहित्य के निर्माणक्रम में उनके सहयोगी थे। भारतेंदु पर उनकी अनन्य श्रद्धा थी, वह अपने को उनका शिष्य कहते तथा देवता की भाँति उनका स्मरण करते थे। भारतेंदु जैसी रचनाशैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण मिश्र जी "प्रतिभारतेंदु" अथवा "द्वितीयचंद्र" कहे जाने लगे थे। बड़े होने पर वह पिता के साथ कानपुर में रहने लगे और अक्षरारंभ के पश्चात् उनसे ही ज्योतिष पढ़ने लगे। किंतु उधर रुचि न होने से पिता ने उन्हें अँगरेजी मदरसे में भरती करा दिया। तब से कई स्कूलों का चक्कर लगाने पर भी वह पिता की लालसा के विपरीत पढ़ाई लिखाई से विरत ही रहे और पिता की मृत्यु के पश्चात् 18-19 वर्ष

कुछ छंद ओरकुट से

तो पेश-ए-खिदमत है , कुछ चुने हुए पद्य , ओरकुट से १ रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी उजालों में रहो, मत धुंध का हिसाब रखो मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह और नादानों में रहना हो रहो नादान से वो जो कल था और अपना भी नहीं था, दोस्तों आज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से २ खामोशी का मतलब इन्कार नही होता.. नाकामयाबी का मतलब हार नही होता.. क्या हुआ अगर हम उन्हे पा ना सके.. सिर्फ पा लेने का मतलब प्यार नही होता... चाहने से कोई बात नही होती.... थोडे से अंधेरे से रात नही होती.. जिन्हे चाहते है जान से ज्यादा.. उन्ही से आज कल मुलाकात भी नही होती... ३ कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं कई सदियों में आती है कोई सूरत हसीं इतनी हुस्न पर हर रोज कहां ऐसे श़बाब आते हैं रौशनी के वास्ते तो उनका नूर ही काफ