फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा भी न था
नवंबर 16, 2015 ・0 comments ・Topic: अदीम हाशमी ग़ज़ल
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा भी न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
वो के ख़ुश-बू की तरह फैला था चार सू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था
मैं तेरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा
सारी दुनिया में मगर कोई तेरे जैसा न था
ये भी सब वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं
आँख धुँधलाई हुई थी शहर धुंदलाया न था
सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब
एक पत्थर था ख़ेमोशी का के जो हटता न था
याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भे चारा न था
मस्लेहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम'
वरना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था
--अदीम हाशमी
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
वो के ख़ुश-बू की तरह फैला था चार सू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था
मैं तेरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा
सारी दुनिया में मगर कोई तेरे जैसा न था
ये भी सब वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं
आँख धुँधलाई हुई थी शहर धुंदलाया न था
सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब
एक पत्थर था ख़ेमोशी का के जो हटता न था
याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भे चारा न था
मस्लेहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम'
वरना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था
--अदीम हाशमी
एक टिप्पणी भेजें
हिन्दी की प्रसिद्ध कवितायें / रचनायें
Published on http://rachana.pundir.in
If you can't commemt, try using Chrome instead.