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Blog jagat me प्रणय गीत

गीत प्रणय का अधर सजा दो । स्निग्ध मधुर प्यार छलका दो । ये गीत लिखा है  कवि कुलवंत सिंह  बहुत ही भावनाओं से ओतप्रेत है यह गीत. कुछ और पंक्तिया  देखें :  नंदन कानन कुसुम मधुर गंध, तारक संग शशि नभ मलंद, अनुराग मृदुल शिथिल अंग, रोम रोम मद पान करा दो । गीत प्रणय का अधर सजा दो । पूरा गीत पढ़ने केलिए जाएँ :  गीत सुनहरे एक और रचना है,  तुम्हें पुकारे पिघला काजल ये नटखट सी  खूबसूरत    रचना लिखी है रत्ना जी ने,  प्रीत रीत का सूरज चमके तन मन रूह सोने सी दमके गम की सन्धया जाए बीत लौट आए जो बिछुड़ा मीत मीत से मिलने पर गम की सांझ बीत जाने की बात करते समय, प्रीत का सूरज चमकने की आशा जगती ये पंक्तिया प्रशंनीय है. और आखिर में मयंक की लिखी पंक्तिया: कोमलता अपनाने वाले, गीत प्रणय के गाते हैं। काँटों में मुस्काने वाले, सबसे ज्यादा भाते हैं।। ~~~

रहीम के दोहे - Rahim Ke Dohe

रहीम के दोहे जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥ अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम। सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥ रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥ गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया। जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥ छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥ तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ खीरा को मुंह काटि के, मलियत लोन लगाय। रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥ एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥ देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन। लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥ जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥ जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि। गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥ खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥ टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोहिए,

मेरा अंतःकरण

यह जो मेरा अंतःकरण है मेरे शरीर के भीतर मैंने इसे युग और यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में द्वन्द्व और संघर्ष को झेल-झेलकर सोच-समझ से मानवीय मूल्यों का साधक और सृजन-धर्मी बनाया तब अपनाया। यही तो है मेरे चिंतन का- मानवीय बोध का परिपुष्टि केंद्र। इसी केंद्र से प्राप्त होती है मुझे अडिग अखंडित आस्था- चारित्रिक दृढ़ता। इसी परिपुष्ट केंद्र से निकली चली आती हैं मेरे आत्म-प्रसार की कविताएँ दूसरों का आत्म-प्रसार बनने वाली कविताएँ जो नहीं होतीं कुंठा-ग्रस्त जो नहीं होतीं पथ-भ्रष्ट जो नहीं होतीं धर्मान्ध जो नहीं होतीं साम्प्रदायिक जो नहीं होतीं काल्पनिक उड़ान की कृतियाँ जो नहीं होतीं भ्रम और भ्रांतियों का शिकार जो नहीं होतीं खोखले शिल्प की खोखली अभिव्यक्तियाँ जो नहीं होतीं मानवीय जीवन की, मुरदार अस्थियाँ जो नहीं होतीं तात्कालिक जैविक संस्पर्शशील, जो नहीं होतीं राजनैतिक हठधर्मिता की संवाहक जो नहीं होतीं अवैज्ञानिक या अलौकिक बोध की प्रतिविच्छियाँ। मैंने इसी परिपुष्ट और परिष्कृत केंद्र का जीवन जिया है न मैंने अंतःकरण को दगा दिया न अंतःकरण ने मुझे दिया

गणतंत्र दिवस 2011

"जन गण मन" गीत मूल रूप से रविन्‍द्रनाथ टैगोर द्वारा बंगाली में लिखा गया था और इसे 24 जनवरी 1950 को हिन्‍दी संस्‍करण के रूप में राष्‍ट्र गान के तौर पर विधानमण्‍डल द्वारा अपनाया गया। इसे भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस कलकत्‍ता सत्र में 27 दिसम्‍बर 1911 को पहली बार गाया गया था। मेरा भारत मेरी शान बैज .जे पी जी (6 KB) में बैज .ए आई (198 KB) में बैज .ई पी एस (559 KB) में बैज .टी आई फ (439 KB) में बैज .पी डी फ (50 KB) में बैज (नई विंडों में खुलती है) .पी एन जी (9 KB) में बैज राष्‍ट्रीय झण्‍डा ई पी एस फॉर्मेट (438 KB) में राष्‍ट्रीय झण्‍डा जिफ फॉर्मेट (2 KB) में राष्‍ट्रीय झण्‍डा जे पी जी फॉर्मेट (4 KB) में राष्‍ट्रीय झण्‍डा राष्‍ट्रीय गान (श्रव्‍य) एम पी 3 फॉर्मेट (817 KB, 0:52 Sec.) में राष्‍ट्रीय गान (नई विंडों में खुलती है) राष्‍ट्रीय गान (वीडियो) उप शीर्षकों सहित वीडियो (6.5 MB, 0:56 Sec.) में राष्‍ट्रीय गान उच्‍च गुणवत्ता वीडियो (6.5 MB, 0:56 Sec.) में राष्‍ट्रीय गान मध्‍यम गुणवत्ता वीडियो (2.3 MB, 0:56 Sec.) में राष्‍ट्रीय गान निम्‍न गुण

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है (ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़ एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है बिस्मिल आजिमाबादी

राही मासूम रज़ा

जन्म: 01 सितंबर 1927 निधन: 15 मार्च 1992 जन्म स्थान गंगौली, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश, भारत कुछ प्रमुख कृतियाँ आधा गाँव, टोपी शुक्ला, हिम्मत जौनपुरी, ओस की बूँद, दिल एक सादा काग़ज़, अजनबी शहर:अजनबी रास्ते, मैं एक फेरी वाला ग़रीबे शहर राही मासूम रज़ा (१ सितंबर, १९२५-१५ मार्च १९९२) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी, लेकिन इंटरमीडियट करने के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से एमए करने के बाद उर्दू में `तिलिस्म-ए-होशरुबा' पर पीएच.डी. की। पीएच.डी. करने के बाद राही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के उर्दू विभाग में प्राध्यापक हो गये और अलीगढ़ के ही एक मुहल्ले बदरबाग में रहने लगे। अलीगढ़ में रहते हुए ही राही ने अपने भीतर साम्यवादी दृष्टिकोण का विकास कर लिया था और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वे सदस्य भी हो गए थे। अपने व्यक्तित्व के इस निर्माण-काल में वे बड़े ही उत्साह से साम्यवादी सिद्धान्तों के द्वारा समाज के पिछड़ेपन को दूर

Raksha Bandhan | रक्षाबंधन

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