"कहाँ कहाँ जाऊँ तेरे साथ कन्हैया": मीराबाई का अमर भक्ति गीत

मार्च 02, 2025 ・0 comments

 


कहाँ कहाँ जाऊँ तेरे साथ कन्हैया
बिन्द्रावन की कुंज गलिन में गहे मिलों मेरो हाथ
दूध मेरो खायो मटकिया फोरी लीनो भुज भर साथ
लपट झपट मोरी गागर पटकी साँवरे सलोने लोने गात
कबहूँ न दान लियो मन-मोहन सदा गोकुल आत जात
'मीराँ के प्रभू गिरिधर नागर जनम जनम के नाथ


"कहाँ कहाँ जाऊँ तेरे साथ कन्हैया" मीराबाई द्वारा रचित एक प्रसिद्ध भक्ति गीत है, जिसमें कृष्ण के प्रति उनके अगाध प्रेम और समर्पण की अभिव्यक्ति है। इस पद में मीरा अपने आराध्य कृष्ण के साथ अपने अनुभवों और भावनात्मक संबंध को व्यक्त करती हैं।

पद का अर्थ और व्याख्या

यह पद मीराबाई के हृदय में बसे कृष्ण-प्रेम की गहराई को दर्शाता है। आइए इसकी पंक्तियों को समझें:

"कहाँ कहाँ जाऊँ तेरे साथ कन्हैया"

मीरा कृष्ण से पूछती हैं कि वे उनके साथ कहाँ-कहाँ जाएँ। यह प्रश्न उनकी अनन्य भक्ति और समर्पण को दर्शाता है, जहाँ वे अपने जीवन के हर क्षण में कृष्ण के साथ रहना चाहती हैं।

"बिन्द्रावन की कुंज गलिन में गहे मिलों मेरो हाथ"

मीरा वृंदावन की कुंज गलियों (पेड़ों और लताओं से घिरे संकरे मार्ग) में कृष्ण के साथ विहार करना चाहती हैं, जहाँ वे उनका हाथ पकड़कर चलें। वृंदावन कृष्ण की लीलाभूमि है, और मीरा वहाँ अपने प्रियतम के साथ रहने की अभिलाषा व्यक्त करती हैं।

"दूध मेरो खायो मटकिया फोरी लीनो भुज भर साथ"

यहाँ मीरा कृष्ण की बाल लीलाओं का उल्लेख करती हैं, जिसमें वे दूध पीते हैं और मटकियाँ (मिट्टी के बर्तन) फोड़ते हैं। "भुज भर साथ" का अर्थ है कि कृष्ण ने अपनी बाहों से मटकियों को लिया। मीरा इन शरारतों को भी प्रेम से याद करती हैं।

"लपट झपट मोरी गागर पटकी साँवरे सलोने लोने गात"

इस पंक्ति में मीरा कृष्ण के द्वारा उनकी गागर (पानी का बड़ा बर्तन) को झपटकर पटकने का वर्णन करती हैं। "साँवरे सलोने लोने गात" से तात्पर्य कृष्ण के सुंदर श्यामल शरीर से है, जिसे मीरा बड़े प्रेम से याद करती हैं।

"कबहूँ न दान लियो मन-मोहन सदा गोकुल आत जात"

मीरा कहती हैं कि मनमोहन (कृष्ण) ने कभी भी उनसे दान (कर) नहीं लिया, लेकिन वे हमेशा गोकुल (कृष्ण का जन्मस्थान) आते-जाते रहते हैं। यह पंक्ति गोपियों से दही-दूध का दान माँगने की कृष्ण की लीला को संदर्भित करती है।

"मीराँ के प्रभू गिरिधर नागर जनम जनम के नाथ"

अंतिम पंक्ति में मीरा अपने आराध्य कृष्ण को "गिरिधर नागर" (गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले सुंदर पुरुष) और "जनम जनम के नाथ" (जन्म-जन्मांतर के स्वामी) के रूप में संबोधित करती हैं, जो उनके अनन्य समर्पण और भक्ति को दर्शाता है।

भक्ति भाव और सांस्कृतिक महत्व

यह पद राधा-कृष्ण प्रेम की परंपरा में लिखा गया है, जहाँ भक्त अपने आप को राधा के रूप में देखता है और कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है। मीराबाई ने इस परंपरा को आत्मसात करते हुए कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त किया है।

इस पद में कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का उल्लेख है - बाल कृष्ण के रूप में मटकियाँ फोड़ना, गोपियों से दही-दूध छीनना, और गोवर्धन पर्वत को धारण करना। ये सभी कृष्ण के जीवन के प्रसिद्ध प्रसंग हैं, जिन्हें मीरा ने अपने पदों में बड़े प्रेम से चित्रित किया है।

मीराबाई का परिचय और उनका कृष्ण-प्रेम

मीराबाई (लगभग 1498-1546) मेवाड़ के राजा रतन सिंह की पत्नी थीं, लेकिन उनका हृदय हमेशा कृष्ण के प्रति समर्पित रहा। उन्होंने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति अटल रही। उनके पद आज भी भक्ति संगीत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर प्रेरित करते हैं।

मीराबाई के इस पद में उनके कृष्ण के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति साकार और निराकार दोनों रूपों में मिलती है। वे कृष्ण के साथ वृंदावन की गलियों में घूमना चाहती हैं (साकार प्रेम), और साथ ही उन्हें जन्म-जन्मांतर के नाथ के रूप में भी देखती हैं (निराकार प्रेम)।

समकालीन प्रासंगिकता

मीराबाई के पद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे उनके समय में थे। वे हमें सिखाते हैं कि सच्ची भक्ति और प्रेम में समर्पण और त्याग का भाव होता है। मीरा ने अपने सामाजिक दायित्वों और रूढ़िवादी परंपराओं के बावजूद अपने आराध्य के प्रति अपनी भक्ति को बनाए रखा, जो आज के समय में भी प्रेरणादायक है।

इस पद को सुनकर श्रोता भी अपने आप को कृष्ण के प्रेम में डूबा हुआ महसूस करता है, जो भक्ति मार्ग का मूल उद्देश्य है - ईश्वर के साथ एकात्मता का अनुभव।


मीराबाई के इस अमर भक्ति गीत में कृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम, समर्पण और विश्वास की झलक मिलती है। यह पद हमें सिखाता है कि ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति में कैसी निश्छलता और प्रेम होता है। मीरा का यह पद आज भी भक्ति संगीत की अनमोल धरोहर है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी सुंदरता और गहराई के साथ लोगों के हृदय को छूता रहेगा।

References

  1. https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.347876

एक टिप्पणी भेजें

हिन्दी की प्रसिद्ध कवितायें / रचनायें
Published on http://rachana.pundir.in

If you can't commemt, try using Chrome instead.