निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
लाख उपाय अनेक यों भले करो किन कोय।।
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।।
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।।
यह गुन भाषा और महं, कबहूँ नाहीं होय।।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।।
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।।