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Short stories by मुंशी प्रेमचंद

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मैया मैं नहीं माखन खायौ

~1~ मैया मैं नहीं माखन खायौ ॥ ख्याल परै ये सखा सबै मिलि, मेरैं मुख लपटायौ ॥ देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचैं धरि लटकायौ ॥ हौं जु कहत नान्हे कर अपनैं मैं कैसैं करि पायौ ॥ मुख दधि पोंछि, बुद्धि इक कीन्हीं, दोना पीठि दुरायौ ॥ डारि साँटि, मुसुकाइ जसोदा, स्यामहि कंठ लगायौ ॥ बाल-बिनोद-मोद मन मोह्यौ, भक्ति -प्रताप दिखायौ ॥ सूरदास जसुमति कौ यह सुख, सिव बिरंचि नहिं पायौ ॥ ~2~ मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी किती बार मोहि दूध पियत भइ, यह अजहूँ है छोटी ॥ तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी-मोटी । काढ़त-गुहत-न्हवावत जैहै नागिनि-सी भुइँ लोटी ॥ काँचौ दूध पियावति पचि-पचि, देति न माखन-रोटी । सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी ॥

गिरगिट ...................................

गिरगिट आप सभी तो जानते ही होंगे इस अजब गजब प्राणी को ............................. गिरगिट है नाम इसका, हिन्दुस्तानी गिरगिट को जीवशास्त्री Chamaeleo chamaeleon के नाम से पुकारते है तो आंग्लभाषी Chameleon के नाम से अब एक गिरगिट इस इंटरनैट पर भी है , बस ये न रंग बदल के लिपि बदलता है। अब आप कोई भी वेबपेज [यूनिकोड मे संपादित ] को किसी भी भारतीय भाषा की लिपि मे देख सकते है वेब साइट गिरगिट अब अगर वेबपेज ही न हो , आपके पास कोई दस्तावेज या ईमेल मे हो तो यहाँ पर चिपका के अपनी लिपि मे समझाने की कोशिश कर ले ..... गिरगिट लीजिये अब जरा एक मुशायरा देख लीजिये, गोरखपुर के गिरगिट गोरखपुरी का ............... अरे , और जानना चाहते है तो इस वेबसाइट को भी कृतार्थ कर दीजिए हिंट्रांस : हिंदी के लिए रोमन-नागरी लिप्यंतरण योजना और रूपांतरण उपकरण अब आख़िर मे , एक साँप ने भी गि र गि ट की तरह रंग बदला सीख लिया है, आप जानना चाहेगे - तो लीजिये अपने चूहे को थोडा सा यहाँ पे दोड़ा के दबायिये .......... अब एक साँप और गिरगिट का युद्ध भी देख ले अब हमे तो इतने ही गिरगिट

सब उन्नति का मूल कारण

    निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल । अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन । उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय । निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय । इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग । और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात । तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय । विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार । भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात । सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय । - भारतेंदु हरिश्चंद्र [ आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह ]   ========================================================================= हिन्दी में ब्लागिंग