सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा हम बुलबुलें है इस की, यह गुलसितां हमारा घुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में समझो वहीं हमें भी, दिल हैं जहाँ हमारा परबत वोह सब से ऊँचा, हमसाया आसमान का वोह संतरी हमारा, वोह पस्बन हमारा गोदी में खेलती हैं इस की हजारों नदिया गुलशन है जिन के दम से, रश्क-ऐ-जनन हमारा आये अब, रूद, गंगा, वोह दिन हें यद् तुझको उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा मज़हब नहीं सिखाता आपस में बयर रखना हिन्दवी है हम, वतन है हिन्दोस्तान हमारा यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा, सब मिट गए जहाँ से अब तक मगर है बाकी, नम-ओ-निशान हमारा कुछ बात है कह हस्ती, miṭati नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ऐ-ज़मान हमारा इकबाल कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में मालूम क्या किसी को, दर्द-ऐ-निहां हमारा --- इकबाल

आज होली है

~भारतेंदु हरिश्चंद्र~ गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में । बुझे दिल की लगी भी तो ए याए होली में ।। नहीं यह है गुलाले सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे, य आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में । गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो, मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में । है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुच है, बने हो ख़ुद ही होली तुम ए दिलदार होली में । रसा गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी, नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में । ~जयशंकर प्रसाद~ बरसते हो तारों के फूल छिपे तुम नील पटी में कौन? उड़ रही है सौरभ की धूल कोकिला कैसे रहती मीन। चाँदनी धुली हुई हैं आज बिछलते है तितली के पंख। सम्हलकर, मिलकर बजते साज मधुर उठती हैं तान असंख। तरल हीरक लहराता शान्त सरल आशा-सा पूरित ताल। सिताबी छिड़क रहा विधु कान्त बिछा हैं सेज कमलिनी जाल। पिये, गाते मनमाने गीत टोलियों मधुपों की अविराम। चली आती, कर रहीं अभीत कुमुद पर बरजोरी विश्राम। उड़ा दो मत गुलाल-सी हाय अरे अभिलाषाओं की धूल। और ही रंग नही लग लाय मधुर मंजरियाँ जावें झूल। विश्व में ऐसा शीतल खेल हृदय में जलन रहे, क्या हात! स्नेह

होली

~~ सूरदास ~~ हरि संग खेलति हैं सब फाग। इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।। सारी पहिरी सुरंग , कसि कंचुकी , काजर दे दे नैन। बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी , सुनि माधो के बैन।। डफ , बांसुरी , रुंज अरु महुआरि , बाजत ताल मृदंग। अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।। एक कोध गोविन्द ग्वाल सब , एक कोध ब्रज नारि। छांडि सकुच सब देतिं परस्पर , अपनी भाई गारि।। मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं , गहि लावतिं अचकाई। भरि अरगजा अबीर कनक घट , देतिं सीस तैं नाईं।। छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि , भुरकतिं बंदन धूरि। सोभित हैं तनु सांझ समै घन , आये हैं मनु पूरि।। दसहूं दिसा भयो परिपूरन , सूर सुरंग प्रमोद। सुर बिमान कौतुहल भूले , निरखत स्याम बिनोद ~~ मीराबाई ~~ रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री। होली खेल्यां स्याम संग रंग सूं भरी , री।। उडत गुलाल लाल बादला रो रंग लाल। पिच काँ उडावां रंग रंग री झरी , री।। चोवा चन्दण अरगजा म्हा , केसर णो गागर भरी री। मीरां दासी गिरधर नागर , चेरी चरण धरी री।।

होली है

होली है

समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का

समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का 'अकबर' ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का गर शैख़ो-बहरमन सुनें अफ़साना किसी का माबद न रहे काब-ओ-बुतख़ाना किसी का अल्लाह ने दी है जो तुम्हे चाँद-सी सूरत रौशन भी करो जाके सियहख़ाना किसी का अश्क आँखों में आ जाएँ एवज़ नींद के साहब ऐसा भी किसी शब सुनो अफ़साना किसी का इशरत जो नहीं आती मिरे दिल में, न आए हसरत ही से आबाद है वीराना किसी का करने जो नहीं देते बयाँ हालते-दिल को सुनिएगा लबे-गोर से अफ़साना किसी का कोई न हुआ रूह का साथी दमे-आखि़र काम आया न इस वक्त़ में याराना किसी का हम जान से बेज़ार रहा करते हैं 'अकबर' जब से दिले-बेताब है दीवाना किसी का अकबर इलाहाबादी

यादें थी कि आज भी उतनी हसीं

एक वक्त था जब वक्त कटता नही था उ नकी याद आने के बाद एक वक्त है आज , जब वक्त कट जाता है उनकी याद आने के बाद ता उम्र कोशिश रही भूल जाऊँ उसे वक्त के फासले भी न मिटा सके उसकी याद उ स के चले जाने के बाद वक्त और यादें कुछ ऐसी डोर से बंधे कि जैसे जैसे भूलने की कोशिश की वक्त कटता ही चला गया इस नादान हरकत मे यादें और जवान होती रही ता उम्र ये कोशिश जारी रही यादें थी कि आज भी उतनी हसीं थी

दिन बसन्त के

दिन बसन्त के राजा-रानी-से तुम दिन बसन्त के आए हो हिम के दिन बीतते दिन बसन्त के पात पुराने पीले झरते हैं झर-झर कर नई कोंपलों ने शृंगार किया है जी भर फूल चन्द्रमा का झुक आया है धरती पर अभी-अभी देखा मैंने वन को हर्ष भर कलियाँ लेते फलते, फूलते झुक-झुककर लहरों पर झूमते आए हो हिम के दिन बीतते दिन बसन्त के ----  ठाकुरप्रसाद सिंह