मैया मैं नहीं माखन खायौ
~1~
मैया मैं नहीं माखन खायौ ॥    
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि, मेरैं मुख लपटायौ ॥     
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचैं धरि लटकायौ ॥     
हौं जु कहत नान्हे कर अपनैं मैं कैसैं करि पायौ ॥     
मुख दधि पोंछि, बुद्धि इक कीन्हीं, दोना पीठि दुरायौ ॥     
डारि साँटि, मुसुकाइ जसोदा, स्यामहि कंठ लगायौ ॥     
बाल-बिनोद-मोद मन मोह्यौ, भक्ति -प्रताप दिखायौ ॥     
सूरदास जसुमति कौ यह सुख, सिव बिरंचि नहिं पायौ ॥
~2~
मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी    
किती बार मोहि दूध पियत भइ, यह अजहूँ है छोटी ॥     
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्वै है लाँबी-मोटी ।     
काढ़त-गुहत-न्हवावत जैहै नागिनि-सी भुइँ लोटी ॥     
काँचौ दूध पियावति पचि-पचि, देति न माखन-रोटी ।     
सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी ॥
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