धुन ये है आम तेरी रहगुज़र होने तक

 कृष्ण बिहारी 'नूर' की ग़ज़ल

धुन ये है आम तेरी रहगुज़र होने तक

हम गुज़र जाएँ ज़माने को ख़बर होने तक


मुझको अपना जो बनाया है तो एक और करम

बेख़बर कर दे ज़माने को ख़बर होने तक

 

अब मोहब्बत की जगह दिल में ग़मे-दौरां है

आइना टूट गया तेरी नज़र होने तक

 

ज़िन्दगी रात है मैं रात का अफ़साना हूँ

आप से दूर ही रहना है सहर होने तक

 

ज़िन्दगी के मिले आसार तो कुछ ज़िन्दा में

सर ही टकराईये दीवार में दर होने तक


यह ग़ज़ल एक आदमी की जीवन दृष्टि को दर्शाती है जो अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों के साथ लड़ रहा है। इस ग़ज़ल में कई तरह के भाव व्यक्त किए गए हैं जैसे कि उम्मीद, अधूरापन, दुःख और इच्छा। इस ग़ज़ल में अधिकतर पंक्तियों में समय की महत्वता दर्शाई गई है। इस ग़ज़ल में आदमी अपनी यात्रा के बारे में सोचता है जो जीवन और मृत्यु से शुरू होकर ख़त्म होती है। इस ग़ज़ल में एक भव्य भाव है जो हमें याद दिलाता है कि हमारी ज़िन्दगी का समय बहुत कीमती है और हमें उसे उत्तम ढंग से जीना चाहिए।