#1

कलियों के होंट छूकर वो मुस्करा रहा है

फ़रवरी 17, 2008 ・0 comments
कलियों के होंट छूकर वो मुस्करा रहा है झोंका हवा का देखो क्या गुल खिला रहा है. पागल है सोच मेरी, पागल है मन भी मेरा बेपर वो शोख़ियों मे...
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#2

दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था

फ़रवरी 17, 2008 ・0 comments
दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था दो चार तीलियों पे ही कितना गुमान था. जब तक कि दिल में तेरी यादें जवांन थीं छोटे से एक घर...
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