कलियों के होंट छूकर वो मुस्करा रहा है झोंका हवा का देखो क्या गुल खिला रहा है. पागल है सोच मेरी, पागल है मन भी मेरा बेपर वो शोख़ियों में उड़ता ही जा रहा है. अपनी नज़र से ख़ुद को देखूं तो मान भी लूं आईना अक्स मुझको तेरा दिखा रहा है. हर चाल में है सौदा, हर चीज़ की है क़ीमत रिश्वत का दौर अब भी उनको चला रहा है. बुझता चिराग़ दिल में, किसने ये जान डाली फिर से हवा के रुख़ पे ये झिलमिला रहा है. पहचान आज पूरी होकर भी है अधूरी कुछ नाम देके आदम उलझन बढ़ा रहा है. बरसों की वो इमारत, अब हो गयी पुरानी कुछ रंग-रौगनों से उसको सज़ा रहा है. देवी नांगरानी
हिन्दी की प्रसिद्ध रचनाओं का सन्कलन Famous compositions from Hindi Literature