दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था
फ़रवरी 17, 2008 ・0 comments ・Topic: काव्य संग्रह देवी नांगरानी पिछली रात को ....
दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था
दो चार तीलियों पे ही कितना गुमान था.
जब तक कि दिल में तेरी यादें जवांन थीं
छोटे से एक घर में ही सारा जहान था.
शब्दों के तीर छोडे गये मुझ पे इस तरह
हर ज़ख़्म का हमारे दिल पर निशान था.
तन्हा नहीं है तू ही यहां और हैं बहुत
तेरे न मेरे सर पे कोई सायबान था.
कोई नहीं था ‘देवी’ गर्दिश में मेरे साथ
बस मैं, मिरा मुक़द्दर और आसमान था
------देवी नांगरानी
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