पुष्प की अभिलाषा

फ़रवरी 12, 2008 ・0 comments

 

चाह नहीं मैं सुरबाला के

गहनों में गूंथा जाऊँ,

चाह नहीं प्रेमी-माला में

बिंध प्यारी को ललचाऊँ,

चाह नहीं, सम्राटों के शव

पर, है हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के शिर पर,

चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!

मुझे तोड़ लेना वनमाली!

उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

जिस पथ जावें वीर अनेक।

                                         माखनलाल चतुर्वेदी

एक टिप्पणी भेजें

हिन्दी की प्रसिद्ध कवितायें / रचनायें
Published on http://rachana.pundir.in

If you can't commemt, try using Chrome instead.