जब तक जाना खुद को ...
जून 11, 2012 ・0 comments ・Topic: कविता कुसि जीवन
जब तक जाना खुद को, देर बहुत होगई थी.
वक़्त कैसे फ़िसला हाथ से, सुइया तो अबभी वहीँ थमी थी.
समझ के जिसको अपना इठला रहा था, वो तो कहीं और खड़ी थी.
जिसे समझा मैने दूर अपने से, वो तो मुझसे ही जुडी थी.
समझा देर से, कोई बात नहीं; लेकिन देर बहुत हो चली थी.
जब तक जाना खुद को, मौत सामने खड़ी थी
जब तक जाना खुद को, देर बहुत होगई थी.
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