उधो मनकी मनमें रही

जनवरी 17, 2016 ・0 comments

उधो मनकी मनमें रही ॥ध्रु०॥
गोकुलते जब मथुरा पधारे कुंजन आग देही ॥१॥
पतित अक्रूर कहासे आये दुखमें दाग देही ॥२॥
तन तालाभरना रही उधो जल बल भस्म भई ॥३॥
हमरी आख्या भर भर आवे उलटी गंगा बही ॥४॥
सूरदास प्रभु तुमारे मिलन जो कछु भई सो भई ॥५॥

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