प्रेम की कविता

प्रेम की कविता

वह मेरी खिड़की के सामने
धीरे से बोली-- ‘म्याऊँ’
मैं उस समय सोया हुआ था
मुझे लगा मेरी नींद में
आ गई है कोई बिल्ली

उसकी लम्बी छलांग से
टूट गयी मेरी नींद
बाहर गया
जब मैं उसका पीछा करता हुआ
तो देखा
मेरी पत्नी थी

मुझे देख मुस्कराती हुई
फिर वह बरसने लगी
मेघ की तरह
मेरे कमरे में

मैं पहली बार भीगा था
कोई सपना जो देखा था
वर्षों पहले
जैसे वह सच हुआ था
मैंने उसे कई बार छुआ था

पर आज जो कुछ मेरे मन में हुआ
वह कभी नहीं हुआ था


----  विमल कुमार

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