Jab Jab ye saavan aaya ......

सितंबर 10, 2018 ・0 comments



जब जब ये सावन आया है।
अँखियाँ छम छम सी बरस गई।
तेरी यादों की बदली से।
मेरी ऋतुएँ भी थम सी गई ।
घनघोर घटा सी याद तेरी ।
जो छाते ही अकुला सी गई ।
पपिहे सा व्याकुल मन मेरा।
और बंजर धरती सी आस मेरी।
कोई और ही हैं...
जो मदमाते हैं।
सावन में 'रस' से,
भर जाते हैं ।
मैं तुमसे कहाँ कभी रीती हूँ ।
एक पल में सदियाँ जीती हूँ।
मन आज भी मेरा तरसा है।
बस नयन मेघ ही बरसा है।।
मन आज भी मेरा तरसा है।
बस नयन मेघ ही बरसा है।।


डॉ. मधूलिका मिश्रा त्रिपाठी 

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