नैन सिंह रावत: हिमालय के रहस्यों के अनावरणकर्ता

फ़रवरी 01, 2025 ・0 comments

 

नैन सिंह रावत: हिमालय के रहस्यों के अनावरणकर्ता

परिचय

नैन सिंह रावत (21 अक्टूबर, 1830 - 1 फरवरी, 1882) कुमाऊँ घाटी के एक असाधारण व्यक्ति थे, जिन्होंने 19वीं शताब्दी में हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों के अन्वेषण में अमूल्य योगदान दिया। वे हिमालयी इलाकों की खोज करने वाले पहले भारतीय थे, जिन्होंने अपने साहस और दृढ़ संकल्प से ऐसे स्थानों का पता लगाया, जहाँ पहले किसी विदेशी का पैर नहीं पड़ा था। उनके द्वारा एकत्रित की गई भौगोलिक जानकारी ने न केवल मानचित्र विज्ञान को समृद्ध किया, बल्कि विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

नैन सिंह रावत का जन्म 21 अक्टूबर, 1830 को वर्तमान उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मिलम गाँव में हुआ था। यह गाँव जोहार घाटी में, भारत-तिब्बत सीमा के निकट स्थित है, जो प्राचीन काल से ही तिब्बत के साथ व्यापारिक संबंधों का केंद्र रहा है। शौक व्यापारियों से संबंधित एक रावत परिवार में जन्मे, नैन सिंह ने बचपन से ही व्यापारिक यात्राओं में अपने परिवार के साध्य दुर्गम हिमालयी मार्गों की यात्रा की थी, जिससे उन्हें इन क्षेत्रों की भौगोलिक समझ विकसित हुई।

उनके परिवार की पृष्ठभूमि ने उन्हें तिब्बती भाषा, संस्कृति और स्थानीय रीति-रिवाजों से परिचित होने का अवसर प्रदान किया, जो बाद में उनके अन्वेषण कार्य में अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ।

भारतीय भू-सर्वेक्षण विभाग के साथ जुड़ाव

1850 के दशक में, ब्रिटिश भारतीय भू-सर्वेक्षण विभाग के कर्नल टी.जी. मोंटगोमरी ने एक विशेष अभियान "ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे ऑफ इंडिया" के अंतर्गत हिमालय और तिब्बत के अज्ञात क्षेत्रों का मानचित्रण करने की योजना बनाई। इस मिशन के लिए ऐसे स्थानीय लोगों की आवश्यकता थी, जो इन क्षेत्रों की भाषा और भूगोल से परिचित हों और अंग्रेजों के लिए अपहुंच क्षेत्रों में जा सकें।

नैन सिंह रावत को उनके ज्ञान और क्षमताओं के कारण इस प्रोजेक्ट के लिए चुना गया। उन्हें देहरादून में विशेष प्रशिक्षण दिया गया, जहां उन्होंने सर्वेक्षण, मानचित्रण, और स्थान-निर्धारण की तकनीकों को सीखा। इसमें सेक्सटैंट का उपयोग, भौगोलिक स्थान का निर्धारण, दूरी मापन और विस्तृत नोट्स बनाने की तकनीक शामिल थी।

तिब्बत अभियान और उपलब्धियां

1865 में, नैन सिंह रावत ने अपना पहला महत्वपूर्ण अभियान शुरू किया - नेपाल से होकर तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण। इस यात्रा में वे एक तिब्बती व्यापारी के भेष में गए, क्योंकि तिब्बत में विदेशियों का प्रवेश निषिद्ध था। अपने साथ प्रार्थना का मनका माला ले गए, जिसका उपयोग वे गुप्त रूप से दूरी मापने के लिए करते थे - प्रत्येक कदम पर एक मनका खिसकाकर वे अपनी यात्रा की दूरी का हिसाब रखते थे।

इस अभियान की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक पहुंचना थी, जहां वे करीब तीन महीने रहे। उन्होंने ल्हासा की सटीक स्थिति और ऊंचाई की माप की, साथ ही तिब्बत के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में अमूल्य जानकारी एकत्र की।

अपनी दूसरी और तीसरी यात्राओं में (1867 और 1873-74), नैन सिंह रावत ने तिब्बत की मुख्य नदी त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र नदी का ऊपरी हिस्सा) के एक विस्तृत हिस्से का मानचित्रण किया और लद्दाख, मानसरोवर और कैलाश पर्वत क्षेत्र का भी अन्वेषण किया।

वैज्ञानिक योगदान

नैन सिंह रावत की यात्राओं ने अज्ञात हिमालयी क्षेत्रों के भूगोल और संस्कृति के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान की। उनके द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों से:

  1. पहली बार ल्हासा की सटीक भौगोलिक स्थिति और ऊंचाई का निर्धारण हुआ
  2. त्सांगपो नदी के पाठ्यक्रम का मानचित्रण किया गया
  3. तिब्बत के कई प्रमुख पर्वत शिखरों और दर्रों की स्थिति और ऊंचाई की जानकारी मिली
  4. तिब्बती संस्कृति, धर्म और समाज के बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त हुआ

इन योगदानों के अलावा, नैन सिंह रावत की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी "अक्षांश दर्पण" नामक पुस्तक का लेखन, जो हिंदी में आधुनिक भौगोलिक विज्ञान पर पहला महत्वपूर्ण ग्रंथ था। इस पुस्तक में उन्होंने सर्वेक्षण, मानचित्रण और स्थान-निर्धारण के सिद्धांतों को सरल हिंदी में समझाया, जो बाद की पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ बन गई।

कार्य पद्धति और चुनौतियां

नैन सिंह रावत के अन्वेषण कार्य में अनेक चुनौतियां और खतरे थे। तिब्बत में विदेशियों का प्रवेश निषिद्ध था, और यदि उनकी असली पहचान का पता चल जाता तो उन्हें गंभीर दंड का सामना करना पड़ सकता था। इसलिए उन्होंने एक तिब्बती व्यापारी के भेष में यात्रा की और स्थानीय भाषा, व्यवहार और रीति-रिवाजों का पालन किया।

अपने मापन और रिकॉर्डिंग के लिए उन्होंने अत्यंत नवीन तरीके अपनाए:

  1. कदम गिनती: विशेष रूप से प्रशिक्षित होकर, वे हर कदम की समान लंबाई सुनिश्चित करते थे और प्रार्थना मालाओं का उपयोग करके अपने कदमों की गिनती रखते थे।
  2. गुप्त उपकरण: उन्होंने अपने मापन उपकरणों को प्रार्थना चक्रों, छड़ियों और धार्मिक सामग्री में छिपाया।
  3. संकेतित नोट्स: वे कोडित भाषा में अपने नोट्स रखते थे, जिन्हें केवल ब्रिटिश अधिकारी ही समझ सकते थे।
  4. खगोलीय अवलोकन: तारों और सूर्य की स्थिति के आधार पर अक्षांश और देशांतर की गणना करने के लिए उन्होंने रात्रि के समय अवलोकन किया।

इन अविश्वसनीय रूप से कठिन परिस्थितियों में, उन्होंने अद्भुत सटीकता के साथ मापन किया, जो आधुनिक उपकरणों से की गई मापों से बहुत मिलते-जुलते थे।

सम्मान और विरासत

नैन सिंह रावत के असाधारण योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए:

  1. रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी, लंदन द्वारा 1877 में विक्टोरिया गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया
  2. पेरिस जियोग्राफिकल सोसाइटी द्वारा भी सम्मानित किया गया
  3. भारत सरकार ने 2004 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया

आज, नैन सिंह रावत को एक महान अन्वेषक, वैज्ञानिक और भारतीय मानचित्रण के अग्रदूत के रूप में याद किया जाता है। हिमालय के रहस्यों को उजागर करने में उनके योगदान ने न केवल भौगोलिक ज्ञान को बढ़ाया, बल्कि इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं की भी समझ विकसित की।

उनकी विरासत "पंडित" अन्वेषकों (जिन्हें अक्सर "पंडित अन्वेषक" कहा जाता है) की एक पूरी पीढ़ी के रूप में जारी रही, जिन्होंने हिमालय और मध्य एशिया के अन्य हिस्सों की खोज जारी रखी।

व्यक्तिगत जीवन और अंतिम वर्ष

नैन सिंह रावत के व्यक्तिगत जीवन के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह ज्ञात है कि वे मिलम गाँव में अपने परिवार के साथ रहते थे और अपने अन्वेषण अभियानों के बीच अपने गृह क्षेत्र लौटते रहते थे।

अपने अंतिम वर्षों में, उन्होंने अपने अनुभवों और ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों के लिए संकलित किया, जिसका परिणाम "अक्षांश दर्पण" जैसी महत्वपूर्ण रचनाओं के रूप में सामने आया।

नैन सिंह रावत का निधन 1 फरवरी, 1882 को हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी हिमालयी अन्वेषण और मानचित्रण के इतिहास में अमर है।

निष्कर्ष

नैन सिंह रावत का जीवन साहस, समर्पण और वैज्ञानिक जिज्ञासा का प्रतीक है। उनके अन्वेषण कार्य ने हिमालय और तिब्बत के बारे में हमारे ज्ञान को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाया और भारतीय भूगोल और मानचित्रण के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा।

आज, जब हम उत्तराखंड के पहाड़ों की ओर देखते हैं, तो नैन सिंह रावत की विरासत हमें याद दिलाती है कि जिज्ञासा, दृढ़ता और साहस के साथ, हम अज्ञात की खोज कर सकते हैं और मानव ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ा सकते हैं।

उनके द्वारा अज्ञात हिमालयी क्षेत्रों के नक्शे पर उतारी गई रेखाएँ न केवल भौगोलिक सीमाओं को चिह्नित करती हैं, बल्कि हमारी सामूहिक खोज की यात्रा के पथ को भी प्रकाशित करती हैं - एक ऐसी यात्रा जिसमें नैन सिंह रावत ने एक अमूल्य योगदान दिया।


"मानव की जिज्ञासा और अन्वेषण की भावना को समर्पित, जो हमें हमेशा अज्ञात की खोज के लिए प्रेरित करती है।"


References: 

  1. https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%88%E0%A4%A8_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4
  2. पंडित नैनसिंह रावत – भारतीय वैज्ञानिक
  3. 'हिमालय पुत्र' नैन सिंह रावत ने जब पहाड़ों में नई राहों की खोज की
  4. एक असाधारण अन्वेषक और विज्ञान लेखक की अपूर्व गाथा

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