पिछली रात ....

पिछली रात ....

पिछली रात की तरह आज भी

रेत ठंडी है, हवा नम है,

आकाश पर चाँद आधा है,

पर उसका दिल पूरा भरा हुआ है

उन अधूरे क़दमों की आहट से।

वो जानता है,

लहरों को जाना ही होगा,

पर फिर भी दिल के किसी कोने में

एक छोटा सा किनारा रोज़ बन जाता है,

जहाँ वो चुपचाप खड़ा

बस इतना सा ख्वाब देखता है—

कभी तो कोई लहर

लौटकर न जाए…।

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