प्रभात
रात्रि की चादर ढलती है धीरे-धीरे,
अंधकार का साम्राज्य टूटता है निरंतर।
क्षितिज पर सुनहरी अग्नि की रेखा,
जैसे ईश्वर ने लिखी हो नई गाथा।
ओ सूर्य! तेरे रथ के पहिए जब घूमते हैं,
धरती के हृदय में जीवन की ध्वनि गूंजती है।
तेरी किरणें—स्वर्णिम तीरों सी,
नव आशा के कक्ष में प्रवेश करती हैं।
निद्रा से जागते वृक्ष, पवन में झूमते,
पक्षियों के स्वर गूँजते जैसे वीणा की तान।
हर कण में नया उत्सव, हर श्वास में नया गीत,
सूर्योदय—मानवता का शाश्वत पुनर्जन्म।
हे प्रभात! तू केवल प्रकाश नहीं,
तू आत्मा का पुनरुत्थान है।
तेरे संग हर दिन एक नाटक आरंभ होता है,
जहाँ जीवन स्वयं रंगमंच पर उतरता है।
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