मई 27, 2010 ・1 comments ・Topic: सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
खिसक गयी है धूप
पैताने से धीरे-धीरे
खिसक गयी है धूप।
सिरहाने रखे हैं
पीले गुलाब।
क्या नहीं तुम्हें भी
दिखा इनका जोड़-
दर्द तुम में भी उभरा?
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
विश्वेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय ,लंबोदराय सकलाय जगध्दिताय।
नागाननाय श्रुतियग्यविभुसिताय,गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
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