नयनों की रेशम डोरी से
अप्रैल 27, 2017 ・0 comments ・Topic: सोहन लाल द्विवेदी
नयनों की रेशम डोरी से
अपनी कोमल बरज़ोरी से।
रहने दो इसको निर्जन में
बाँधो मत मधुमय बन्धन में,
एकाकी ही है भला यहाँ,
निठुराई की झकझोरी से।
अन्तरतम तक तुम भेद रहे,
प्राणों के कण कण छेद रहे।
मत अपने मन में कसो मुझे
इस ममता की गँठजोरी से।
निष्ठुर न बनो मेरे चंचल
रहने दो कोरा ही अँचल,
मत अरुण करो हे तरुण किरण।
अपनी करुणा की रोरी से।
अपनी कोमल बरज़ोरी से।
रहने दो इसको निर्जन में
बाँधो मत मधुमय बन्धन में,
एकाकी ही है भला यहाँ,
निठुराई की झकझोरी से।
अन्तरतम तक तुम भेद रहे,
प्राणों के कण कण छेद रहे।
मत अपने मन में कसो मुझे
इस ममता की गँठजोरी से।
निष्ठुर न बनो मेरे चंचल
रहने दो कोरा ही अँचल,
मत अरुण करो हे तरुण किरण।
अपनी करुणा की रोरी से।
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