ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते ये धागे

 

ग़ज़ल सुदर्शन फ़ाकिर 

ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते ये धागे

किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें

मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के

न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें


अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी 

हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का

लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे

मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का


मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये

मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे

ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो

कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे


जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा

नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से

रवायत है शायद ये सदियों पुरानी

शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से

इस रिश्ते में कुछ ख़ास होता है

 ये रिश्ता कुछ अजीब होता है, जिसमें ना नफरत की वजह मिलती है और ना ही मोहब्बत का सिला। इस रिश्ते में कुछ ख़ास होता है जो शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। यह रिश्ता दो लोगों के बीच में एक अलग स्तर पर होता है, जो दूसरों के साथ नहीं होता है।

शायद इस रिश्ते में दोनों की आत्माओं का संबंध होता है, जो सामान्य ज़िन्दगी में नहीं होता है। यह रिश्ता एक अलग रूप में विकसित होता है, जो दो लोगों को अनुभव करने की अनुमति देता है। इस रिश्ते में कुछ ख़ास होता है, जो शायद दो लोगों को ही पता होता है।


कुछ अजीब सा रिश्ता है उसके और मेरे दरमियाँ 
ना नफरत की वजह मिल रही है,ना मोहब्बत का सिला