ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते ये धागे

 

ग़ज़ल सुदर्शन फ़ाकिर 

ये शीशे, ये सपने, ये रिश्ते ये धागे

किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें

मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के

न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें


अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी 

हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का

लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे

मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का


मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये

मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे

ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो

कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे


जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा

नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से

रवायत है शायद ये सदियों पुरानी

शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से

दिल की दीवार-ओ-दर पे क्या देखा

दिल की दीवार-ओ-दर पे क्या देखा

बस तेरा नाम ही लिखा देखा


तेरी आँखों में हमने क्या देखा

कभी क़ातिल कभी ख़ुदा देखा

 

अपनी सूरत लगी पराई सी

जब कभी हमने आईना देखा  


सुदर्शन फ़ाकिर